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श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता में कहा है, "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।" इसका अर्थ है कि मनुष्य को अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। यह सिखाता है कि हमें अपना सर्वश्रेष्ठ देना चाहिए और परिणाम की चिंता भगवान पर छोड़नी चाहिए।
श्रीकृष्ण ने जीवनभर सत्य और धर्म का साथ दिया। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए हर परिस्थिति में सही और बुद्धिमान निर्णय लिया। यह सिखाता है कि सत्य और धर्म के मार्ग पर चलना जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है।
श्रीकृष्ण ने अपने मित्र सुदामा के साथ गहरी मित्रता निभाई। उनकी मित्रता सिखाती है कि सच्ची मित्रता में स्वार्थ और भेदभाव के लिए कोई जगह नहीं होती।
4 परिवर्तन को स्वीकार करना:
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श्रीकृष्ण ने हर परिस्थिति में सहजता और धैर्य बनाए रखा। महाभारत के युद्ध से लेकर गोपियों के साथ उनकी लीलाओं तक, उन्होंने सिखाया कि जीवन में परिवर्तन स्वाभाविक है, और उसे खुले दिल से स्वीकार करना चाहिए।